हे चईत के महिना दाई आबे मंझनी

हे चईत के महिना दाई आबे मंझनी

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हे चइत के महिना दाई आबे मंझनी

हे चइत के महिना दाई आबे मंझनी

बोरे बासी संग म खवांहूं तोला वो

पताल चटनी

कहां ले पावौं माल पूवा मैं निर्धन किसान वो

घर म आबे चीला खवांहूं चांउर के पिसान वो

तैं आबे मंझनी तैं आबे मंझनी

बोरे बासी संग म खवांहूं तोला वो

पताल चटनी

अंगाकर हा बने मिठाही संग मिरचा के झार वो

भोग लगा ले महामायी महूं ला देना तार वो

तैं आबे मंझनी तैं आबे मंझनी

बोरे बासी संग म खवांहूं तोला वो

पताल चटनी

देव बलौदा देव लोक म हावै तोरे वास वो

नव दिन ले बलावत हौं मैं करि के उपास वो

तैं आबे मंझनी तैं आबे मंझनी

बोरे बासी संग म खवांहूं तोला वो

पताल चटनी

हे चइत के महिना दाई आबे मंझनी

हे चइत के महिना दाई आबे मंझनी

बोरे बासी संग म खवांहूं तोला वो

पताल चटनी

✍ लेखक: दिलीप षड़गी

🎤 प्रस्तुतकर्ता: -

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